" श्रीमदभगवद्गीता ज्ञान रूपी गंगा है। "

जिस प्रकार गंगा में स्नान से तन और मन दोनो निर्मल होते हैं, ठीक उसी प्रकार श्रीमदभगवद्गीता रूपी ज्ञान गंगा में प्रवेश करने से तन और मन दोनो निर्मल होते हैं। इसलिए मानसकारों ने श्रीमदभगवद्गीता को ज्ञान गंगा कहा है। श्रीमदभगवद्गीता लिखने -पढ़ने -सुनने -सुनाने व समझने से मनुष्य के भीतर अज्ञानरूपी अंधकार नष्ट होता है और ज्ञान रूपी प्रकाश होता है। श्रीमदभगवद्गीता का उद्देश्य ही अज्ञान निवारण है।

इस ज्ञान गंगा में डुबकी लगाने से पहले श्रीमदभगवद्गीता अमृतवाणी को आत्मसार करें। श्रीमदभगवद्गीता अमृतवाणी को आत्मसार करने से श्रीमदभगवद्गीता का महात्म्य एवं श्रीमदभगवद्गीता को पढ़ने -सुनने -सुनाने व समझने में बहुत सुगमता होगी। इसी भावना से हमने गढ़वाली श्रीमदभगवद्गीता की रचना की है।

हमें विश्वास है कि आप हमारी इस पहल को आत्मसार करके इस महान ग्रंथ की अच्छाई से संस्कारित होकर मानव समाज को सद्मार्ग पर चलने की प्रेरणा देंगे।

"इस पावन ग्रंथ को स्वयं भी पढें औरों को भी पढ़ायें। इस ग्रंथ की अच्छाई स्वयं भी सुनें औरों को भी सुनायें। यह ग्रंथ पढ़ने के लिए, सुनने के लिए, एवं सुनाने के लिए ही लिखा गया है।"

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